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Monday, May 28, 2012

क्या पूजन क्या अर्चन रे!

 
क्या पूजन क्या अर्चन रे!
उस असीम का सुंदर मंदिर
मेरा लघुतम जीवन रे!
मेरी श्वासें करती रहतीं
नित प्रिय का अभिनंदन रे!
पद रज को धोने उमड़े
आते लोचन में जल कण रे!
अक्षत पुलकित रोम मधुर
मेरी पीड़ा का चंदन रे!
स्नेह भरा जलता है झिलमिल
मेरा यह दीपक मन रे!
मेरे दृग के तारक में
नव उत्पल का उन्मीलन रे!
धूप बने उड़ते जाते हैं
प्रतिपल मेरे स्पंदन रे
प्रिय प्रिय जपते अधर ताल
देता पलकों का नर्तन रे!
- महादेवी वर्मा

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